Nobel Peace Prize News: नोबेल शांति पुरस्कार, जो विश्व में शांति के लिए उल्लेखनीय योगदान देने वालों को दिया जाता है, हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। हाल की खबरों में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नोबेल शांति पुरस्कार की खुली मांग ने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को लेकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। दूसरी ओर, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक महात्मा गांधी, जिन्हें शांति और अहिंसा का प्रतीक माना जाता है, कभी इस पुरस्कार के लिए नहीं चुने गए, न ही उन्होंने कभी इसकी मांग की। यह विडंबना एक बार फिर सुर्खियों में है।
गांधीजी और नोबेल पुरस्कार: एक ऐतिहासिक अनदेखी
महात्मा गांधी, जिन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के माध्यम से भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए पांच बार (1937, 1938, 1939, 1947 और 1948) नामांकित किया गया था। इसके बावजूद, नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने उन्हें यह पुरस्कार नहीं दिया। कई इतिहासकारों और विश्लेषकों का मानना है कि गांधीजी का औपनिवेशिक शक्तियों, खासकर ब्रिटेन के खिलाफ आंदोलन, इस निर्णय में बाधा बना। 1948 में उनकी हत्या के बाद, समिति ने उस वर्ष कोई पुरस्कार नहीं दिया, जिसे कई लोग गांधीजी को सम्मानित करने से चूकने का प्रतीक मानते हैं। बाद में, नोबेल समिति ने स्वीकार किया कि गांधीजी को पुरस्कार न देना उनकी सबसे बड़ी चूक थी।
गांधीजी ने कभी इस पुरस्कार की मांग नहीं की। उनके लिए, शांति और अहिंसा केवल पुरस्कार के लिए नहीं, बल्कि मानवता के लिए एक जीवन दर्शन थे। उनकी यह निस्वार्थ भावना आज भी विश्व भर में प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
डोनाल्ड ट्रंप की नोबेल मांग: विवादों का केंद्र
वहीं, हाल की खबरों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन ने खुलकर नोबेल शांति पुरस्कार की मांग की है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने दावा किया है कि ट्रंप ने अपने छह महीने के कार्यकाल में छह वैश्विक संघर्षों को समाप्त किया, जिनमें भारत-पाकिस्तान, इजरायल-ईरान, थाईलैंड-कंबोडिया, और अन्य शामिल हैं। इस आधार पर, व्हाइट हाउस ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग की है। इसके अलावा, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ट्रंप को 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया है।
हालांकि, भारत ने ट्रंप के इन दावों को सिरे से खारिज किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है, और ट्रंप की मध्यस्थता के दावे निराधार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्पष्ट किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी।
हिलेरी क्लिंटन का सशर्त समर्थन
इस बीच, अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भी ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की बात कही, लेकिन एक शर्त के साथ। उन्होंने कहा कि यदि ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध को यूक्रेन की भौगोलिक स्थिति में बदलाव किए बिना समाप्त करा देते हैं, तो वह उनका समर्थन करेंगी। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि यह लक्ष्य आसान नहीं है, क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच समझौता जटिल मुद्दों पर अटका हुआ है।
ट्रंप का बदलता रुख
जहां पहले ट्रंप ने खुलकर नोबेल की मांग की थी, वहीं अब उनका रुख बदलता दिख रहा है। हाल ही में उन्होंने कहा, “मुझे नोबेल पुरस्कार नहीं चाहिए, मैं बस युद्ध रोकना चाहता हूं और लोगों की जान बचाना चाहता हूं।” कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत के इनकार और अन्य आलोचनाओं के बाद ट्रंप अपनी छवि बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
गांधी और ट्रंप: एक तुलना
गांधीजी और ट्रंप की तुलना कई मायनों में प्रासंगिक है। जहां गांधीजी ने अहिंसा और नैतिकता के बल पर शांति की स्थापना की, वहीं ट्रंप के दावे कूटनीतिक उपलब्धियों और विवादास्पद बयानों पर आधारित हैं। गांधीजी ने कभी पुरस्कार की चाह नहीं रखी, जबकि ट्रंप की मांग ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या शांति के लिए काम करना पुरस्कार की उम्मीद से प्रेरित होना चाहिए, या यह गांधीजी की तरह निस्वार्थ भाव से होना चाहिए? यह सवाल आज भी प्रासंगिक है।
निष्कर्ष
नोबेल शांति पुरस्कार का निर्णय नॉर्वेजियन नोबेल समिति 10 अक्टूबर 2025 को करेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ट्रंप की मांग और नामांकन उन्हें यह पुरस्कार दिला पाएंगे, या गांधीजी की तरह वह भी इस सम्मान से वंचित रह जाएंगे। एक ओर जहां गांधीजी की विरासत शांति और अहिंसा का प्रतीक बनी हुई है, वहीं ट्रंप का नोबेल पुरस्कार का दावा विवादों और कूटनीतिक रणनीतियों के बीच उलझा हुआ है।
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