पंजाब पुनर्गठन की पृष्ठभूमि
भारत की आजादी के बाद, 1947 में पंजाब का विभाजन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप इसका एक हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और दूसरा हिस्सा भारत में रहा। भारतीय पंजाब में पंजाबी और हिंदी भाषी समुदायों का मिश्रण था, जिसके कारण भाषाई आधार पर राज्य के पुनर्गठन की मांग लंबे समय से उठ रही थी। सिख समुदाय, विशेष रूप से अकाली दल, पंजाबी भाषा और संस्कृति के आधार पर एक अलग राज्य की मांग कर रहा था। दूसरी ओर, हिंदी भाषी क्षेत्रों, खासकर हरियाणा और हिमाचल के निवासियों की अपनी अलग पहचान की मांग थी।
लाल बहादुर शास्त्री की भूमिका
लाल बहादुर शास्त्री, जो 1964 से 1966 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, ने इस जटिल मुद्दे को सुलझाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके कार्यकाल में, 1965 के भारत-पाक युद्ध और देश में खाद्य संकट जैसी चुनौतियों के बीच, शास्त्री जी ने पंजाब के भाषाई पुनर्गठन की मांग को गंभीरता से लिया। उन्होंने इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए एक समिति का गठन किया, जिसे बाद में शाह आयोग के रूप में जाना गया। इस आयोग ने पंजाबी और हिंदी भाषी क्षेत्रों के बीच सीमांकन की सिफारिश की, जो पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के गठन का आधार बनी। शास्त्री जी की दूरदर्शिता और समावेशी दृष्टिकोण ने इस प्रक्रिया को गति दी, हालांकि उनकी असामयिक मृत्यु के कारण वह अंतिम परिणाम नहीं देख सके।
इंदिरा गांधी का योगदान
1966 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तब उन्होंने शास्त्री जी द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। उनके नेतृत्व में 1 नवंबर, 1966 को पंजाब पुनर्गठन अधिनियम लागू हुआ, जिसके तहत पंजाब को भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया। पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब राज्य के रूप में रखा गया, जबकि हिंदी भाषी क्षेत्रों से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश (तब केंद्र शासित प्रदेश) का गठन हुआ। चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की साझा राजधानी बनाया गया। इंदिरा गांधी के निर्णायक नेतृत्व ने इस प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया, जिससे पंजाब की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को मजबूती मिली।
संजीव चोपड़ा का विश्लेषण
पूर्व IAS अधिकारी संजीव चोपड़ा ने दिप्रिंट में अपने लेख में इस बात पर जोर दिया है कि हालांकि इंदिरा गांधी को पंजाब के पुनर्गठन का श्रेय मिलता है, लेकिन इसकी नींव शास्त्री जी के कार्यकाल में रखी गई थी। चोपड़ा लिखते हैं कि शास्त्री जी ने न केवल भाषाई विविधता को समझा, बल्कि राष्ट्रीय एकता को बनाए रखते हुए क्षेत्रीय मांगों को संतुलित करने का प्रयास किया। उनकी सादगी और व्यावहारिक दृष्टिकोण ने इस प्रक्रिया को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
पंजाब का पुनर्गठन भारत के इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने क्षेत्रीय और भाषाई पहचान को मजबूत करने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा दिया। लाल बहादुर शास्त्री ने इसकी नींव रखी, जबकि इंदिरा गांधी ने इसे मूर्त रूप दिया। दोनों नेताओं का योगदान इस प्रक्रिया को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। जैसा कि संजीव चोपड़ा ने बताया, यह एक सामूहिक प्रयास था, जिसमें शास्त्री जी की दूरदर्शिता और इंदिरा जी का दृढ़ निश्चय समान रूप से महत्वपूर्ण था।

