देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा वैसे तो कई बिल पास किये गए है। लेकिन इनमें से एक बिल ऐसा है जो सरकार को मदरसों में सीधे घूसने की अनुमति देता है। मदरसा चलाने के लिए सरकार की मर्जी होना जरूरी हो गया है। दरअसल, बुधवार को नौ विधेयकों को मंजूरी दी, जिनमें समान नागरिक संहिता (UCC), धर्म परिवर्तन और अल्पसंख्यक शिक्षा से संबंधित विवादों से भरा विधेयक शामिल हैं। इन विधेयकों को लेकर सदन में विपक्ष के भारी हंगामे के बीच यह मंजूरी दी गई।
क्या है “उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक – 2025”
ब्ता दें कि सबसे चर्चित “उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक – 2025” (“Uttarakhand Minority Education Bill – 2025”) ने 2016 के मदरसा बोर्ड अधिनियम को निरस्त कर दिया। इस विधेयक के तहत अब न केवल मुस्लिम संस्थानों, बल्कि सिख, जैन, ईसाई, पारसी और बौद्ध समुदायों के शैक्षणिक संस्थानों को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाएगा। इस कदम को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक अल्पसंख्यक समुदायों के बीच समानता को बढ़ावा देगा और अवैध गतिविधियों पर नकेल कसेगा।
1 जुलाई 2026 तक सरकार करानी होगी मान्यता
नए कानून के अनुसार, सभी मदरसों को 1 जुलाई 2026 तक सरकार से मान्यता प्राप्त करनी होगी। सरकार को यह अधिकार होगा कि वह इन संस्थानों की गतिविधियों की जांच कर सके। विपक्ष ने इस विधेयक को लेकर कड़ा विरोध जताया और इसे अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर हमला बताया। समान नागरिक संहिता और धर्म परिवर्तन से संबंधित संशोधनों पर भी विपक्ष ने सवाल उठाए। विपक्षी नेताओं का कहना था कि ये विधेयक संवैधानिक अधिकारों का सीधे सीधे उल्लंघन करता हैं और इनका उद्देश्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना है। हालांकि, सत्तारूढ़ भाजपा ने इन विधेयकों को सामाजिक सुधार और समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया।
मुख्यमंत्री धामी बोले
मुख्यमंत्री धामी (Chief Minister Dhami) ने विधानसभा में कहा, “ये विधेयक उत्तराखंड को एक प्रगतिशील और समावेशी राज्य बनाने की दिशा में उठाया गया कदम हैं। हमारा लक्ष्य सभी समुदायों के लिए समान अवसर और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।”विपक्षी दलों ने सदन में हंगामा किया और कई बार कार्यवाही को बाधित करने की कोशिश की। इसके बावजूद, सत्तारूढ़ दल के बहुमत के चलते सभी नौ विधेयकों को मंजूरी मिल गई। यह कदम उत्तराखंड सरकार की हालिया नीतियों का एक हिस्सा भर मात्र है, जो समान नागरिक संहिता और सामाजिक सुधारों पर जोर दे रही है। हालांकि, इन विधेयकों के दीर्घकालिक प्रभाव और इनके कार्यान्वयन पर अभी भी कई सवाल बने हुए हैं।
यह भी पढ़ें: द्रोण मेला है इसलिए जिले के स्कूल बंद, क्या आप जानते हैं कि इस मेले का इतिहास

