Drona Mela in Dankur: ग्रेटर नोएडा के दनकौर में चल रहा द्रोण मेले के चलते जिले के सभी स्कूल बंद है। इतना ही नही जिला प्रशासन के कार्यलय भी बंद है। ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहे है कि द्रोण मेला क्या है और ये क्यो आयोजित होता है। चलिए बताते है मेले की खासियत। बता दें कि ये मेला गुरु द्रोणाचार्य के नाम पर आयोजित होता है, एक वार्षिक आयोजन है जिसका गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह मेला आमतौर पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के समय से लगभग 10 दिनों तक चलता है। गौतमबुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश में स्थित दनकौर को प्राचीन काल में द्रोणकौर के नाम से जाना जाता था, और माना जाता है कि यहीं पर गुरु द्रोणाचार्य का गुरुकुल था, जहां उन्होंने कौरवों और पांडवों को शिक्षा दी थी।
मेले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बता दें कि मेले का मुख्य आकर्षण गुरु द्रोणाचार्य का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि पूरे भारत में केवल दनकौर में ही गुरु द्रोणाचार्य का एक मात्र मंदिर है। यहां पर एकलव्य द्वारा बनाई गई गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा आज भी स्थापित है। मेला मुख्य रूप से श्री द्रोण नाट्य शाला के परिसर में आयोजित होता है। मेले में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
ये होते है कार्यक्रम
दंगल (कुश्ती)ः दनकौर का दंगल बहुत प्रसिद्ध है और इसे उत्तर प्रदेश के सर्वोच्च दंगलों में से एक माना जाता है। इसमें देश भर के पहलवान भाग लेते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रमः मेले में पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक विषयों पर आधारित नाटक, कवि सम्मेलन और रागनी गायन जैसे कार्यक्रम होते हैं। इसके अलावा बच्चों के लिए झूले, खाने-पीने के स्टॉल और विभिन्न प्रकार के मनोरंजन मेले का हिस्सा होते हैं।
क्या है सांस्कृतिक महत्व
यह मेला सिर्फ एक मनोरंजन का केंद्र नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को दर्शाता है। धार्मिक आस्था का केंद्ररू यह मेला गुरु द्रोणाचार्य के प्रति लोगों की आस्था को दर्शाता है, जो महाभारत के एक महान और पूजनीय चरित्र हैं। सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षणरू मेले में आयोजित होने वाले नाट्य मंचन, कवि सम्मेलन और अन्य कार्यक्रम भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। यह मेला विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है, जिससे सामाजिक एकता और भाईचारे को बढ़ावा मिलता है। पारंपरिक कलाओं का प्रोत्साहनरू दंगल, रागनी और अन्य पारंपरिक कलाओं को इस मेले के माध्यम से एक मंच मिलता है, जिससे इन कलाओं को जीवित रखने में मदद मिलती है। मेले के दौरान, भारी भीड़ के कारण यातायात को नियंत्रित करने के लिए अक्सर गौतमबुद्ध नगर में स्कूलों को बंद कर दिया जाता है, जो इसकी लोकप्रियता और महत्व को दर्शाता है। यह मेला दनकौर और आसपास के क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण वार्षिक परंपरा है जो उनके इतिहास और संस्कृति को दर्शाती है।
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