Mumbai News: भारतीय रुपया, जो हाल ही में तीन सप्ताह के उच्च स्तर पर पहुंचा था, अब कमजोर एशियाई मुद्राओं और इक्विटी बाजारों में सुस्त प्रवाह के कारण अपनी तेजी खो सकता है। रॉयटर्स की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता और अमेरिकी टैरिफ नीतियों के दबाव ने एशियाई मुद्राओं पर असर डाला है, जिसका प्रभाव भारतीय रुपये पर भी पड़ सकता है।
पिछले कुछ समय से रुपया मजबूती से प्रदर्शन कर रहा था, लेकिन अब विशेषज्ञों का मानना है कि अल्पकालिक अस्थिरता बढ़ सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये की रक्षा के लिए सक्रिय रूप से हस्तक्षेप किया है, लेकिन वैश्विक जोखिम भावनाओं में कमी और पूंजी बहिर्वाह के जोखिम ने बाजार में अनिश्चितता बढ़ा दी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी टैरिफ के कारण निर्यात-प्रधान क्षेत्रों पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे रुपये में तात्कालिक कमजोरी देखने को मिल सकती है। हालांकि, भारत की मजबूत घरेलू वृद्धि और त्वरित नीतिगत समर्थन इस गिरावट को सीमित कर सकते हैं। मध्यम अवधि में, भारत द्वारा रुपये आधारित व्यापार मार्गों को बढ़ावा देने की रणनीति अस्थिरता को कम करने में मदद कर सकती है।
निवेशकों की नजर अब जैक्सन होल में होने वाले फेडरल रिजर्व के वार्षिक नीति सम्मेलन पर टिकी है, जहां वैश्विक आर्थिक नीतियों पर चर्चा हो सकती है, जो रुपये और अन्य एशियाई मुद्राओं के भविष्य को प्रभावित कर सकती है।
हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत की आर्थिक नींव मजबूत होने के कारण रुपये में बड़ी गिरावट की संभावना कम है। फिर भी, निवेशकों को सतर्क रहने और वैश्विक संकेतों पर नजर रखने की सलाह दी जा रही है।
रुपये की तेजी पर, क्या लग सकता है ब्रेक, कमजोर एशियाई संकेत और सुस्त इक्विटी प्रवाह का असर

