सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम, जस्टिस विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति पर विवाद, पढ़िये पूरी ख़बर

Supreme Court Collegium News: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा वर्ष 2023 में एडवोकेट लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश ने भारतीय न्यायिक और राजनीतिक हलकों में तीखा विवाद खड़ा कर दिया था। इस नियुक्ति को लेकर न केवल वकीलों के बीच मतभेद उभरे, बल्कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंच गया। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

विवाद की शुरुआत
17 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम, जिसकी अगुवाई तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ कर रहे थे, ने एल विक्टोरिया गौरी सहित चार अन्य वकीलों को मद्रास हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की। कॉलेजियम में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ भी शामिल थे। इस सिफारिश के बाद ही विवाद शुरू हो गया, जब कुछ वकीलों ने गौरी की नियुक्ति का विरोध करते हुए उनके कथित राजनीतिक जुड़ाव और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत भरे भाषण देने के आरोप लगाए।

मद्रास हाई कोर्ट बार के 21 वकीलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को पत्र लिखकर गौरी की नियुक्ति की सिफारिश को वापस लेने की मांग की। पत्र में दावा किया गया कि गौरी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के महिला मोर्चा की महासचिव रह चुकी हैं और उन्होंने मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दिए थे। वकीलों ने तर्क दिया कि उनकी नियुक्ति से न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सवाल उठ सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका
विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के कुछ वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की। इस याचिका में वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने तत्काल सुनवाई की मांग की और 1992 के एक मामले (कुमार पद्म प्रसाद बनाम भारत संघ) का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई कोर्ट जज की नियुक्ति को रद्द कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि गौरी ने कथित तौर पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए थे, जो उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी 2023 को इस मामले की सुनवाई की। यह सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने की। उसी दिन सुबह करीब 9:15 बजे सुनवाई शुरू होने से ठीक पहले गौरी ने मद्रास हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि कॉलेजियम द्वारा सिफारिश किए गए नामों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती। जस्टिस संजीव खन्ना ने यह भी उल्लेख किया कि गौरी के कथित भाषण 2018 के थे और कॉलेजियम ने संभवतः इन तथ्यों पर विचार किया होगा।

जस्टिस बीआर गवई ने अपने निजी अनुभव का हवाला देते हुए कहा, “मेरे पास भी जज बनने से पहले राजनीतिक जुड़ाव था, लेकिन पिछले 20 सालों से जज के रूप में मेरा यह जुड़ाव मेरे काम के आड़े नहीं आया।” कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति के विचारों के आधार पर उनकी नियुक्ति को रद्द करना उचित नहीं होगा, और कॉलेजियम की प्रक्रिया पर सवाल उठाना गलत मिसाल कायम करेगा।

कॉलेजियम और सीजेआई का रुख
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने इस मामले में कॉलेजियम के फैसले का बचाव किया। 21 अक्टूबर 2023 को हार्वर्ड लॉ स्कूल के एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि कॉलेजियम ने गौरी के भाषणों सहित सभी सामग्रियों की सावधानीपूर्वक जांच की थी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि किसी वकील के राजनीतिक विचारों के आधार पर उसे पक्षपाती नहीं माना जा सकता। चंद्रचूड़ ने जस्टिस कृष्णा अय्यर का उदाहरण देते हुए कहा कि कई ऐसे वकील जो विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे उत्कृष्ट जज साबित हुए हैं।

चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि कॉलेजियम की प्रक्रिया में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी जाती है और सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श किया जाता है। उन्होंने कहा, “हमने उस भाषण को बहुत ध्यान से देखा और सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया।”

केंद्र सरकार की भूमिका
केंद्र सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश को जल्दी ही मंजूरी दे दी। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने 6 फरवरी 2023 को ट्वीट किया कि केंद्र ने गौरी सहित 13 अतिरिक्त जजों की नियुक्ति को मंजूरी दी है। यह ट्वीट उस समय आया जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई की तारीख तय हो रही थी, जिससे विवाद और गहरा गया।

विक्टोरिया गौरी का बैकग्राउंड
एल विक्टोरिया गौरी कन्याकुमारी जिले की पहली महिला वकील हैं, जिन्होंने स्वतंत्र कार्यालय स्थापित किया। उन्होंने 1995 में मदुरै लॉ कॉलेज से कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और उसी साल मद्रास हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। 2006 में उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै खंडपीठ में प्रैक्टिस शुरू की और ‘वीविक्ट्री’ नाम से एक लॉ फर्म स्थापित किया गया, जो घरेलू हिंसा के मामलों और कानूनी जागरूकता के लिए जाना जाना गया है। 2022 में वे मदुरै खंडपीठ में केंद्र की सहायक सॉलिसिटर जनरल नियुक्त हुईं।

2024 में स्थायी जज की सिफारिश
विवादों के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 10 सितंबर 2024 को गौरी सहित पांच अतिरिक्त जजों को मद्रास हाई कोर्ट का स्थायी जज बनाने की सिफारिश की। इस कॉलेजियम की अगुवाई जस्टिस बीआर गवई ने की। अन्य जजों में जस्टिस पीबी बालाजी, जस्टिस केके रामकृष्णन, जस्टिस आर. कलीमथी और जस्टिस के. गोविंदराजन तिलकवाडी शामिल थे। इस सिफारिश को मद्रास हाई कोर्ट कॉलेजियम ने 29 अप्रैल 2024 को सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने भी मंजूरी दी थी। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की समिति ने इन जजों के फैसलों का मूल्यांकन कर उनकी योग्यता की पुष्टि की थी।

निष्कर्ष
जस्टिस विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति का मामला न्यायपालिका में नियुक्ति प्रक्रिया और कॉलेजियम सिस्टम की पारदर्शिता पर बहस को फिर से जीवंत कर गया। जहां एक ओर उनके राजनीतिक जुड़ाव और बयानों को लेकर सवाल उठे, वहीं सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस मामले में स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति के विचारों को उनकी निष्पक्षता को मूलभूत आधार नहीं बनाया जा सकता।

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