Ujjain News: पंकज मारू की पहल से 7 करोड़ दिव्यांगों को मिला सम्मान, अब ‘मानसिक विकृत’ की जगह ‘बौद्धिक दिव्यांग’

Ujjain News: मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर के निवासी डॉ. पंकज मारू की अथक मेहनत और समर्पण ने देश के लगभग 7 करोड़ दिव्यांगों के लिए एक ऐतिहासिक बदलाव की राह प्रशस्त की है। उनकी पहल के परिणामस्वरूप भारतीय रेलवे ने एक संवेदनशील निर्णय लेते हुए रेल टिकटों और अन्य आधिकारिक दस्तावेजों में ‘मानसिक रूप से विकलांग’ जैसे अपमानजनक शब्द को हटाकर ‘बौद्धिक दिव्यांग’ शब्द को अपनाने का फैसला किया है।

यह बदलाव न केवल शब्दावली में सुधार है, बल्कि यह समाज में दिव्यांगजनों के प्रति सम्मान और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। डॉ. पंकज मारू, जो स्वयं एक सामाजिक कार्यकर्ता और दिव्यांगों के अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्षरत हैं, ने इस मुद्दे को रेल मंत्रालय के समक्ष उठाया था। उनकी मांग थी कि ‘मानसिक विकृत’ जैसे शब्द न केवल अपमानजनक हैं, बल्कि यह दिव्यांगजनों की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं। उनकी इस पहल को व्यापक समर्थन मिला और अंततः रेलवे ने उनकी मांग को स्वीकार कर लिया।

डॉ. मारू ने कहा, “यह बदलाव सिर्फ शब्दों का नहीं, बल्कि समाज की सोच को बदलने का एक प्रयास है। ‘बौद्धिक दिव्यांग’ शब्द न केवल सम्मानजनक है, बल्कि यह उन लोगों की विशेष क्षमताओं को भी रेखांकित करता है, जो विभिन्न चुनौतियों के बावजूद समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।”

भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 2.68 करोड़ लोग दिव्यांग हैं, जो कुल आबादी का 2.21% हिस्सा है। इनमें से बड़ी संख्या बौद्धिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करने वाले लोगों की है। इस बदलाव से न केवल रेलवे की सेवाओं में, बल्कि समाज के अन्य क्षेत्रों में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।

रेल मंत्रालय ने इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा कि यह कदम दिव्यांगजनों के प्रति संवेदनशीलता और समावेशी समाज के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस बदलाव को लागू करने के लिए रेलवे ने अपने सिस्टम में आवश्यक तकनीकी और प्रशासनिक बदलाव शुरू कर दिए हैं।

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के लिए प्रसिद्ध इस शहर ने एक बार फिर सामाजिक बदलाव की मिसाल पेश की है। डॉ. पंकज मारू की इस पहल ने न केवल उज्जैन, बल्कि पूरे देश में दिव्यांगजनों के लिए सम्मान और स्वीकार्यता की नई उम्मीद जगाई है।

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