Supreme Court me vote list lekar sunai: बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण” (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई हुई है। इस प्रक्रिया को लेकर विपक्ष और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों ने गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने 24 जून, 2025 को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का आदेश दिया था। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूचियों में मौजूद डुप्लिकेट और फर्जी मतदाताओं को हटाना, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि केवल भारतीय नागरिक ही मतदाता सूची में शामिल हों। इसके लिए 1 जुलाई, 2025 को अर्हता तिथि निर्धारित की गई थी, यानी इस तिथि तक 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले व्यक्ति मतदाता बनने के योग्य होंगे।
हालांकि, विपक्षी दलों और याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया की समय-सीमा, आवश्यक दस्तावेजों की सूची और इसकी व्यवहार्यता पर सवाल उठाए। उनकी मुख्य चिंताओं में यह शामिल था कि बिहार में बड़ी संख्या में लोग काम के सिलसिले में राज्य से बाहर रहते हैं, और इतने कम समय में सभी आवश्यक दस्तावेज जुटाना उनके लिए मुश्किल होगा। साथ ही, आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्रों को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार न करने पर भी आपत्ति जताई गई।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा सुनवाई जारी रहेगी, रोक नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह निर्वाचन आयोग का संवैधानिक अधिकार है और प्रक्रिया जारी रहेगी।
दस्तावेजों पर कोर्ट की टिप्पणी: कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से कहा कि आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड (EPIC) और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को मतदाता पंजीकरण के लिए प्रमाण के रूप में स्वीकार करने पर विचार किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति जताई थी कि इन व्यापक रूप से धारित दस्तावेजों को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा रहा है, जिससे लाखों लोग मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। निर्वाचन आयोग ने अदालत में तर्क दिया कि केवल आधार कार्ड से नागरिकता साबित नहीं होती है। हालांकि, कोर्ट ने जोर दिया कि “न्याय के हित में” इन दस्तावेजों पर विचार किया जाना चाहिए।
नागरिकता का मुद्दा गृह मंत्रालय का: सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि गैर-नागरिकों को मतदाता सूची से हटाना गृह मंत्रालय का काम है, न कि चुनाव आयोग का। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से अपने अधिकार क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने को कहा।
समय-सीमा पर सवाल: कोर्ट ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण की “टाइमिंग” पर सवाल उठाए। न्यायाधीशों ने पूछा कि अगर यह प्रक्रिया आवश्यक थी, तो इसे विधानसभा चुनावों से ठीक पहले क्यों शुरू किया गया। कोर्ट ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इसे पहले क्यों नहीं किया गया, यह एक अहम सवाल है।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), राजद सांसद मनोज झा और अन्य याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि SIR की कठोर दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं और कम समय-सीमा के कारण लाखों मतदाता, विशेषकर हाशिए पर पड़े समूह, मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बिहार में लगभग 4 करोड़ लोगों को मतदाता सूची में अपना नाम जोड़ने के लिए 3 अलग तरह के दस्तावेज देने होंगे, जो कि अव्यावहारिक है।
निर्वाचन आयोग का पक्ष: निर्वाचन आयोग ने अदालत को बताया कि उसका इरादा किसी भी मतदाता को उनके मताधिकार से वंचित करने का नहीं है। आयोग ने कहा कि उसे मतदाता सूचियों में संशोधन करने का अधिकार है और सुनवाई तथा उचित प्रक्रिया के बिना किसी का भी नाम नहीं हटाया जाएगा। आयोग ने गैर-सरकारी संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि वे बिहार के मतदाता नहीं हैं।
आगे क्या होगा
सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से इस मामले में एक सप्ताह के भीतर (21 जुलाई, 2025 तक) अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। याचिकाकर्ताओं को भी 28 जुलाई, 2025 से पहले अपना प्रत्युत्तर दाखिल करना होगा। मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई, 2025 को निर्धारित की गई है। इस दौरान, बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का कार्य जारी रहेगा। ड्राफ्ट मतदाता सूची अगस्त में प्रकाशित होने वाली है।
यह मामला बिहार में आगामी चुनावों के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और कानूनी मुद्दा बन गया है, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

