लखनऊ। कोई जहर दे दे मर जाऊं। ऐसे जीने से क्या फायदा। मत कराओ कोई दवा जो होगा देखा जाएगा। छह महीने पहले कौशांबी जिले के ईशु पुरारा गांव की रहने वाली प्रतिभा यही कहा करती थी। अब जीने की चाह है और घर-परिवार के लिए कुछ करना चाहती है।
संजय गांधी पीजीआई के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल और प्रो. दुर्गा प्रसन्ना की मेहनत रंग लाई। प्रतिभा की परेशानी कम हो गई, जिससे उसके हौसले को पंख लग गए।
प्रतिभा के लिए दस कदम भी चलना संभव नहीं था। सांस फूलने लगती, लेकिन अब वह दो से तीन किमी पैदल चल सकती है। 2006 में प्रतिभा के हाथ-पैर की उंगलियों में घाव हो जाता था।
मवाद नहीं पड़ता, लेकिन पक जाता था। इसके बाद धीरे-धीरे सांस भी फूलने लगी। इलाहाबाद, कानपुर में जगह इलाज कराया पर ठीक नहीं हुआ। जनवरी 2017 में कानपुर के डॉक्टर साहब ने पीजीआइ भेजा जहां पर प्रो. विकास अग्रवाल ने इलाज शुरू किया। प्रतिभा को इंटरस्टियल लंग डिजीज (आइएलडी) विद स्कैलोडर्मा थी। मरीज को बताया गया कि यह उनका खोजा हुआ नुस्खा है, सहमति हो तो इलाज किया जाए। इलाज के दो महीने बाद से राहत मिलने लगी।
संजय गांधी पीजीआइ के प्रो. विकास अग्रवाल ने बताया कि हम लोग किसी भी बीमारी का इलाज इंटरनेशनल गाइड लाइन के अनुसार करते हैं। भारत में नई दवाओं की खोज कम हुई है। इसीलिए आइएलडी बीमारी के इलाज के लिए पूरे विश्व में साइक्लोफास्फोमाइड दवा देते हैं। इस दवा से बीमारी बढऩे की दर में कुछ ही कमी देखी गई है। इस दवा से इलाज के बाद भी व्यक्ति का फेफड़ा पांच से सात साल में काम करना बंद कर देता है। इंटरनेशनल गाइड लाइन के अनुसार हम भी यही इलाज देते थे।
प्रो. विकास अग्रवाल ने बताया कि इस परेशानी से राहत के लिए काफी लंबे समय से शोध करते रहे। नए नुस्खे में रक्त प्रवाह बढ़ाने वाली दवाओं को शामिल कर कांबीनेशन थिरेपी विकसित की गई। इस नुस्खे को पहले कुछ मरीजों पर सहमति के बाद ट्राइ किया तो देखा कि बीमारी के कारण होने वाली परेशानियों में कमी आई है। इस खास नुस्खे से मरीज को चार से पांच फीसद तक आराम मिला।कोई जहर दे दो मर जाऊं
ऐसे जीने से क्या फायदालखनऊ। कोई जहर दे दे मर जाऊं। ऐसे जीने से क्या फायदा। मत कराओ कोई दवा जो होगा देखा जाएगा। छह महीने पहले कौशांबी जिले के ईशु पुरारा गांव की रहने वाली प्रतिभा यही कहा करती थी। अब जीने की चाह है और घर-परिवार के लिए कुछ करना चाहती है।
संजय गांधी पीजीआई के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल और प्रो. दुर्गा प्रसन्ना की मेहनत रंग लाई। प्रतिभा की परेशानी कम हो गई, जिससे उसके हौसले को पंख लग गए।
प्रतिभा के लिए दस कदम भी चलना संभव नहीं था। सांस फूलने लगती, लेकिन अब वह दो से तीन किमी पैदल चल सकती है। 2006 में प्रतिभा के हाथ-पैर की उंगलियों में घाव हो जाता था।
मवाद नहीं पड़ता, लेकिन पक जाता था। इसके बाद धीरे-धीरे सांस भी फूलने लगी। इलाहाबाद, कानपुर में जगह इलाज कराया पर ठीक नहीं हुआ। जनवरी 2017 में कानपुर के डॉक्टर साहब ने पीजीआइ भेजा जहां पर प्रो. विकास अग्रवाल ने इलाज शुरू किया। प्रतिभा को इंटरस्टियल लंग डिजीज (आइएलडी) विद स्कैलोडर्मा थी। मरीज को बताया गया कि यह उनका खोजा हुआ नुस्खा है, सहमति हो तो इलाज किया जाए। इलाज के दो महीने बाद से राहत मिलने लगी।
संजय गांधी पीजीआइ के प्रो. विकास अग्रवाल ने बताया कि हम लोग किसी भी बीमारी का इलाज इंटरनेशनल गाइड लाइन के अनुसार करते हैं। भारत में नई दवाओं की खोज कम हुई है। इसीलिए आइएलडी बीमारी के इलाज के लिए पूरे विश्व में साइक्लोफास्फोमाइड दवा देते हैं। इस दवा से बीमारी बढऩे की दर में कुछ ही कमी देखी गई है। इस दवा से इलाज के बाद भी व्यक्ति का फेफड़ा पांच से सात साल में काम करना बंद कर देता है। इंटरनेशनल गाइड लाइन के अनुसार हम भी यही इलाज देते थे।
प्रो. विकास अग्रवाल ने बताया कि इस परेशानी से राहत के लिए काफी लंबे समय से शोध करते रहे। नए नुस्खे में रक्त प्रवाह बढ़ाने वाली दवाओं को शामिल कर कांबीनेशन थिरेपी विकसित की गई। इस नुस्खे को पहले कुछ मरीजों पर सहमति के बाद ट्राइ किया तो देखा कि बीमारी के कारण होने वाली परेशानियों में कमी आई है। इस खास नुस्खे से मरीज को चार से पांच फीसद तक आराम मिला।