Ghaziabad news : एक ओर सरकार अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है। दूसरी ओर अस्पतालों में मरीजों को खाने में जली हुई रोटी परोसी जा रही है। इसकी शिकायत मरीजों के जरिए लगातार कैंटीन संचालक से की जा रही है। लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
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नंदग्राम निवासी विंध्यवासिनी को डायरिया की शिकायत पर शुक्रवार को एमएमजी अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था। उन्होंने बताया कि अस्पताल में कैंटीन संचालक द्वारा दिया गया खाने की गुणवत्ता बेहद खराब थी। इसके कारण उन्हें घर से खाना मंगवाना पड़ा। इसके अलावा इमरजेंसी में पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं थी। यहां तक कि इमरजेंसी के टॉयेलट तक में पानी नहीं था। टॉयेलट जाने के लिए भी उन्हें बाहर से खरीदकर पानी मंगवाना पड़ा। विंध्यवासिनी तीन दिन तक अस्पताल में भर्ती रहीं। उन्होंने बताया कि इमरजेंसी में टॉयेलट साफ करने के दौरान ही कर्मचारी पानी की सप्लाई चालू करते हैं और उसके बाद सप्लाई बंद कर देते हैं। इमरजेंसी में भर्ती मरीजों को टॉयलेट जाने के लिए बाहर से पानी लाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं का यह हाल तब है जब केंद्र सरकार मरीजों को गुणवत्ता पूर्ण उपचार दिलवाने के लिए आयुष्मान भव अभियान चला रही है।
अस्पताल के सीएमएस डॉ. मनोज चतुर्वेदी का कहना है कि अस्पताल में टेंडर के जरिए मरीजों का खाना बनाने की जिम्मेदारी एक संस्था को दी गई है। खाने की गुणवत्ता की जांच करने के लिए अस्पताल में कमिटी भी बनी है, जो प्रतिदिन खाने की जांच करती है। यदि खाने में कोई गड़बड़ी है तो उसे दूर करवाया जाएगा और स्टाफ को साफ-सफाई के निर्देश दिए जाएगी।
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