उत्तर प्रदेश में बिजली खपत और संसाधनों का आकलन करने में पावर कॉरपोरेशन चूक आमतन पर भारी पड़ रही है। जिस प्रकार से लगातार उपभोक्ता और भार बढ रहा है उस हिसाब से संसाधनों का विकास नहीं किया गया। जिसका नतीजा रहा कि बिजली को लेकर पूरे प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ है। नोएडा को नो पावर कट जोन किया है लेकिन यहां भी बिजली काटौती जमक र हो रही है। बताया जा रहा है कि अगस्त के लिए अभी से तैयारी नहीं की गई तो हालात ज्यादा खराब हो सकते
यूपी पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन ने नियामक आयोग को दी गई रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2023-24 में अधिकतम खपत 27531 मेगावाट तक हो सकती है। इस आधार पर सभी तैयारी भी की गई, जबकि इस वर्ष 13 जून को ही खपत का आंकड़ा बढ़कर 27611 मेगावाट तक पहुंच गया है।
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यह नौबत तब है, जब ग्रामीण इलाके में ब्रेक डाउन के तहत ट्रांसफर फुंकने, केबिल जलने, तार टूटने, जंफर उड़ने, फ्यूज उड़ने जैसी घटनाएं लगातार हो रहीं हैं। इसकी वजह से कई इलाके में घंटों सप्लाई बाधित रहती है।विभागीय जानकारों का कहना है कि निर्धारित शिड्यूल के तहत आपूर्ति सुनिश्चित की जाए तो खपत 29 हजार मेगावाट तक पहुंच सकती है। यही हाल संसाधनों के विकास का भी रहा है। मौजूदा संसाधन 5.50 करोड़ किलोवाट का भार उठाने योग्य है। उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर 3.52 करोड़ हो गई है, इससे भार बढ़कर 7.47 करोड़ किलोवाट हो गया है। निगमों की ओर से उपकेंद्रों के उच्चीकरण को ध्यान में नहीं रखा गया। अब रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) के तहत अब 35384 करोड़ रुपये से एबी केबल डालने सहित अन्य कार्य शुरू कराए गए हैं, लेकिन यह कार्य लंबे समय तक चलने वाला है। कुछ कार्यों के लिए अभी टेंडर प्रक्रिया चल रही है। इसे दिसंबर तक पूरा करने का दावा किया जा रहा है, जो संभव नहीं दिख रहा है।
बारिश होगी तो तो बिजली की किल्लत भी होगी
प्रदेश में बिजली को लेकर जून माह में किल्लत हो रही है। अभी बारिश के मौसम में यह समस्या और बढ़ सकती है। बारिश के मौसम में खपत का आंकड़ा भी बढ़ता है। क्योंकि वर्ष 2021-22 में 28 जुलाई को अधिकतम खपत 24798 पहुंची थी। वर्ष 2022-23 में नौ सितंबर को अधिकतम खपत 26589 मेगावाट पहुंची थी।
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उद्योगों पर पड़ेगा असर
बिजली की किल्लत से उद्योगों पर सीधे असर पड़ेगा। जिस तरह से दिल्ली एनसीआर में एनजीटी ने डीजल जेनसेट पर रोक लगाई है उससे नोएडा ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़, बुलदशहर आदि जिलों में उद्योग चलाना बेहद मुश्किल हो जाएगा।