नफरत फैलाने की प्रतियोगिता
अंग्रेजों के जमाने में आईएएस की परीक्षा के स्थान पर आईसीएस परीक्षा होती थी, वह भी लंदन में। इस परीक्षा के साक्षात्कार में एक भारतीय छात्र से पूछा गया कि आप एक देश पर राज कैसे कर सकते हैं। उसने जवाब में कहा कि डिवाइड एंड रूल। यह सुनते ही साक्षात्कार लेने वाला अंग्रेज प्रसन्न हुआ और उस छात्र का आईसीएस परीक्षा में चयन हो गया। यह बातें कहीं-कहीं इतिहास की किताबों में लिखी भी है। ठीक इसी तरह अंग्रेजों की नीति अपना कर आज भी सत्ता हासिल की जा रही है। लॉर्ड लिंटन ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लाकर भारतीय अखबार पर शिकंजा कसा। हालांकि अंग्रेजी अखबारों को छूट दी गई। इसका मतलब यह है कि जो सत्ता के पक्ष में बोलेगा उसे आजादी, विरोध में बोलने वाले का दमन।
सन् 1920 में खिलाफत आंदोलन के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता अंग्रेजों से बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने ऐसे बीज बोए कि फिर दोनों साथ-साथ ना आ पाए। ठीक वैसे ही स्थिति आज देश में है। सरकार डिवाइड एंड रूल वाली नीति अप्रत्यक्ष रूप से अपना रही है तथा खबरिया चैनल उसे प्रत्यक्ष रुप से अमलीजामा पहनाने का काम कर रहे हैं। कहीं भी छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी वारदात क्यों नहीं हो उसमें भी हिंदू-मुसलमान का रंग चढ़ाने में खबरिया चैनल पूरी भूमिका निभाते हैं। रही सही कसर भाजपा नेता पूरी कर देते हैं। इतना ही नहीं आजकल टीवी ऑन करो और न्यूज़ चैनल लगाओ तो जहां भी देखो हिंदू और मुसलमान पर ही डिबेट होती नजर आएगी। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव 2019 नजदीक आ रहे है ठीक वैसे ही हिंदू मुस्लिम डिबेट बढ़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि खबरिया चैनल के एंकर भी सद्भाव के खिलाफ हो गए हैं। सही तथ्य कहने वाला, रोजगार मांगने वाला, हक की आवाज उठाने वाले तथा अपने संस्कृति एवं भाषा की रक्षा करने वाले अल्पसंख्यकों को देशद्रोही या आतंकी का सर्टिफिकेट तुरंत दे दिया जाता है। न्यूज़ चैनलों को देख कर लगता है कि किसी ने हिंदू-मुसलमान के बीच नफरत फैलाने की प्रतियोगिता शुरू कराई है। जो जितना मुसलमानों के खिलाफ बोलेगा उसे उतना बड़ा इनाम मिलेगा। हालांकि इसके अलावा भी देश में सैकड़ों मुद्दे हैं लेकिन उनसे चैनलों को कोई फायदा नहीं, इसलिए उन पर बात करना भी उचित नहीं समझते।