विमुद्रीकरण के बाद सरकार की बेनामी संपत्तियों पर जनमानस में उत्कंठा
मोहम्मद आजाद
नोएडा में ऐसी सैंकड़ों नहीं हजारों संपत्तियां हैं जो एक नहीं कई-कई पॉवर ऑफ एटॉर्नी पर चल रही हैं। लेकिन प्राधिकरण की कोई पॉलिसी न होने के कारण ये संपत्तियां हस्तांतरित नहीं हो पा रही हैं। नतीजतन संपत्ति मालिक अपनी संपत्ति में रह तो रहे हैं लेकिन दस्तावेजों में वे मालिक हैं ही नहीं, जो मालिक है वो दुनिया में ही नहीं हैं। प्राधिकरण अगर ऐसी संपत्तियों के हस्तांतरण की योजना लाता है तो इससे उसकी आर्थिक स्थित तो संभलेगी ही, साथ ही आवंटियों को भी बड़ी राहत मिलेगी।
नई दिल्ली। देश में विमुद्रीकरण के बाद सरकार की बेनामी संपत्तियों या घोषित/ अघोषित संपत्तियों को लेकर जनमानस में उत्कंठा बनी हुई है। प्रॉपर्टी पासबुक से यह उत्कंठा उत्सुकता में बदलने लगी है। बेनामी संपत्ति खरीदने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से संपत्ति खरीददारी लंबे समय तक प्रबल माध्यम बनी रही। साथ ही कम पैसे वाले खरीददारों के लिए भी पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से संपत्ति खरीददारी बहुत मददगार रही।
पावर ऑफ अटॉर्नी व एग्रीमेंट आदि के आधार पर संपत्ति क्रय विक्रय की सामाजिक स्वीकार्यता ने इसे और भी सुगम बना दिया था। लंबे समय से सरकारों द्वारा पावर ऑफ अटॉर्नी व विक्रय संविदा (एग्रीमेंट) आदि दस्तावेजों के आधार पर खरीदी गई संपत्तियों की अंतरण अनुमति न देने के कारण उन खरीददारों के अस्तित्व संकट में आ गया है जिनके पास संपत्ति क्रय के साक्ष्य के रूप में केवल पावर ऑफ अटॉर्नी आदि दस्तावेज व कब्जा ही है।
संपत्ति का मूल्य बहुत अधिक होने के कारण तथा संपत्ति अंतरण की नीति स्पष्ट न होने के कारण काफ़ी पहले दिल्ली की संपत्तियां केवल पावर ऑफ अटॉर्नी व अन्य संकेतिक दस्तावेज़ों के आधार पर ही बिका करती थीं। कालांतर में दिल्ली के आसपास विकसित होने वाले फरीदाबाद, गुडग़ांव व नोएडा आदि शहरों में भी इस प्रकार पावर ऑफ अटॉर्नी आदि के आधार पर क्रय विक्रय होने लगा। इस प्रकार से संपत्ति को क्रय करने का एक मुख्य कारण आर्थिक भी था।
मध्यम श्रेणी व अल्प आय वर्ग के लोगों के लिए अपनी छत के नीचे जीवन गुजारने योग्य बनने के लिए इस प्रकार से संपत्ति खरीदने के अतिरिक्त कोई चारा भी नहीं था। गरीब परिवार या मध्यम श्रेणी तक के परिवार का अर्थशास्त्र यह ही रहता है कि जब उनके पास 60-70 हजार रुपए होते हैं तो 1 लाख मूल्य की संपत्ति पसंद आने पर एडवांस देकर तय कर लेते हैं और फिर बाकी भुगतान करने के लिए निर्धारित समय में मित्रों, रिश्तेदारों से या बैंक से कर्जा लेने की कोशिश की जाती है।
चूंकि बिना रजिस्ट्री के बैंक से लोन नहीं मिल सकता और जमा पूंजी समाप्त प्राय होती है तो पंजीकृत या केवल नोटेरी द्वारा सत्यापित पावर ऑफ अटॉर्नी, विक्रय संविदा आदि दस्तावेज़ों का सहारा लिया जाता है।