देश की राजनीति में आजकल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2019 में वापसी सबसे बड़ा चर्चा का विषय बनी है। जो कभी एक न हो सकते थे वो भी एक हो गए है। राजनीति में सबकुछ जायज है। ये भाजपा के साथ-साथ अन्य दल भी साबित कर रहे है। सांप्रदायिकता जातिवाद और विकास के नाम पर खोखली घोषणाओं के साथ-साथ बेरोजगारी, जीएसटी और विमुद्रीकरण के बाद आर्थिक ग्रोथ गिरना आदि मोदी के लिए नासूर बन सकता है। ये भी हकीकत है कि विपक्षियों के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टक्कर का कोई नेतृत्व नहीं है। भाजपा ने धीरे-धीरे देश के लगभग सभी राज्यों में सरकार बना ली है। मगर उपचुनाव के परिणाम भाजपा के लिए सवाल खड़े कर रहे है। सबसे अधिक लोकसभा सीट वाला प्रदेश यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मोर्या अपनी ही लोकसभा सीट भाजपा के लिए सुरक्षित नहीं कर पाए। इसके बाद कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने आक्रमक रूख अपनाया। सरकार बनाने के कई दावे किए लेकिन बहुमत न होने पर कांग्रेस का गठबंधन सरकार बना ले गया। गुजरात में जहां भाजपा अध्यक्ष 150 से अधिक सीटे लाने का दावा कर रहे थे वो भी खोखला साबित हुआ। वोट प्रतिशत धीरे-धीरे घटता जा रहा है। कैराना में सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूरा जोर लगाया लेकिन विपक्ष की एक जुटता के आगे उन्हें करारी शिकस्त मिली। यदि गठबंधन 2019 चुनाव तक ऐसे ही रहेगा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी को गहरा झटका लग सकता है। आमजन के मन में विपक्ष के नेतृत्व को लेकर सवाल है तो भाजपा की नीतियों को लेकर लोगों में गुस्सा है। बदलाव जरूर चाहते है मगर मोदी जैसे नेतृत्व की तलाश है। सबका साथ सबका विकास प्रधानमंत्री का नारा है जबकि विपक्ष हम सबका साथ और देश का विकास की दुहाई दे रहा है। पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतें भी मोदी सरकार को चुकानी पड़ सकती है। एक बार सरकार प्याज की भेट चढ़ी थी तो अब पेट्रोल डीजल की बारी है।