नोएडा। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर लगी आग में न जाने कितने बेगुनाह लोग गुनाहगार हो गए। इस आग की लपटें दिल्ली से शुरू होकर धीरे-धीरे पुरे देश में जा फैली। ऐसे में यह अहम सवाल खड़ा होता है कि इस आग का असली गुनेहगार कौन है? छात्रों का कहना है कि वह यहां शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो फिर ऐसा अचानक क्या हुआ कि पुलिस को छात्रों पर लाठी चार्ज करना पड़ा और इससे बात नहीं बनी तो उनपर आंसू गैस के गोले छोड़े गए।
ऐसी क्या मजबूरी पुलिस के आगे आई कि उन्हें मसजिद के अन्दर घुसकर नमाज पढ़ रहे लोगों को मारना पड़ा? किसने पुलिस को इजाजत दी की वह यूनिवर्सिटी के कैंपस में घुसकर मारपीट करें? क्यों पुलिस को खुद बस में आग लगानी पड़ी? ऐसे ही बड़े गंभीर सवाल खड़े हो रहें जिनके जवाब हर कोई मांग रहा है। कौन है वह जिससे इस देश में अमन-शांती नहीं चाहिए। क्या केवल भाषणबाजी से ही सबकुछ ठीक हो जाएगा। जब देश आजाद हुआ था तो क्या यहीं वह लोग थे जिन्हांनें अपना खुन बहाया था और आज भी अपनी आजादी के लिए इन्हें अपना खून बहाना पड़ रहा है।
क्या अपनी बात को रखना अब देश में गैर कानूनी हो गया है? क्या सड़क पर वह छात्र गुनाहगार हैं जो शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे? या वे लोग गुनाहगार हैं जिन्होंने छात्रों पर बर्बरता दिखाई? या वे राजनीतिक दल हैं जो इतना सब कुछ होने के बाद भी मूक दर्शक बने रहे। या वे लोग हैं जो टीवी पर बैठे अपने हिसाब से गलत-सही बताने पर जोर देते हैं?