आदर्श रामलीला का चौथा दिन हुआ राम-सीता विवाह और वनवास का भावुक दृश्य का मंचन

आदर्श रामलीला का चौथा दिन हुआ राम-सीता विवाह और वनवास का भावुक दृश्य का मंचन

पंचकूला, 24 सितंबर

 

आदर्श रामलीला एवं ड्रामाटिक क्लब, शालीमार ग्राउंड, सेक्टर-5, पंचकुला के मंच पर चौथे दिवस भगवान श्रीराम की भव्य बारात जनकपुरी पहुँची। गाजे-बाजे, जयघोष और मंगल ध्वनियों के बीच राजा दशरथ अपने चारों पुत्रों के साथ बारात लेकर आए। मंत्रोच्चारण और वैदिक विधियों के बीच जनकपुरी में श्रीराम और सीता का पावन विवाह सम्पन्न हुआ। कन्यादान के इस भावुक क्षण में राजा जनक ने भारी मन से अपनी सुपुत्री सीता को विदा किया।

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विवाहोत्सव के बाद अयोध्या में उत्सव का आल्हादपूर्ण वातावरण छा गया। राजा दशरथ ने हर्षपूर्वक श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा की। लेकिन आनंद का यह पर्व अचानक शोक में बदल गया जब मंथरा की कपटी चाल से रानी कैकेयी का मन परिवर्तित हो गया। कैकेयी ने दशरथ से अपने दो वरदान मांग लिए—पहला, अयोध्या का सिंहासन भरत को देने का, और दूसरा, श्रीराम को चौदह वर्षों के लिए वनवास भेजने का।

“रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई” की परंपरा निभाते हुए, राजा दशरथ ने विवश होकर कैकेयी के वर स्वीकार किए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने पिता के वचनों को सहजता से मानते हुए वनगमन का निर्णय लिया।

 

कोपभवन का यह भावनाओं से भरा दृश्य मंच पर जीवंत हो उठा। राजा दशरथ और कैकेयी के संवादों, मंथरा की धूर्तता और राम के त्यागपूर्ण निर्णय ने दर्शकों को गहराई तक भावुक कर दिया। दर्शकों की भारी भीड़ ने कलाकारों की अदाकारी और मंचन की भव्यता की जमकर सराहना की।

आज की लीला में मुख्य कलाकार‌ के रूप में राजा दशरथ का पात्र पवन शर्मा, भगवान श्रीराम का सौरभ शर्मा, लक्ष्मण का लविश अरोरा, सीता का गुंजन चौहान, रानी कैकेयी का सलोनी शर्मा, रानी कौशल्या का विनीता कौल, मंथरा का राहुल चौहान, महर्षि विश्वामित्र का सुनील कुमार, गुरु वशिष्ठ का कृष्णा शर्मा एवं सुमन्त का दर्पण कंसल द्वारा मंच पर रामलीला के किरदार के रूप में प्रस्तुति दी गई।

रामलीला के चौथे दिन के समापन पर आदर्श रामलीला के प्रधान रमेश चड्डा ने कहा कि भगवान श्री राम का जीवन चरित्र हमें चरित्र निर्माण कैसे हो इसका ज्ञान देता है। एक तरफ जहां माता कैकयी अपने पुत्र भारत के लिए अयोध्या का सिंहासन मांगती है वहीं दूसरी तरफ भगवान श्री राम के लिए 14 वर्ष का वनवास। परंतु उनके इस मांग पर जबकि भगवान श्री राम का उनके राजतिलक होने में कोई दोष नहीं है, परंतु वह अपने पिता के वचन के लिए तुरंत राजगद्दी त्याग कर वनवास में जाने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे ही त्याग की भावना हर मनुष्य को अपने जीवन में उतारनी चाहिए और माता-पिता का आदेश सभी को मनाना चाहिए, जिससे उनके चरित्र का निर्माण हो सके।

आज के कार्यक्रम में पत्रकार अंकुश महाजन को संस्था के प्रधान रमेश चड्डा महासचिव अमित गोयल वरिष्ठ सचिव प्रदीप कांसल मीडिया प्रभारी रवीश गौतम द्वारा स्मृति चिन्ह देखकर सम्मानित किया गया।

 

 

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