दिल्ली पब्लिक स्कूल प्रबंधन द्वारा अभिभावकों पर दबाव बनाने का यह कोई पहला मामला नहीं है। स्कूल प्रबंधक हमेशा गलती होने पर अभिभावकों पर ही ऐसा दबाव बनाते हैं कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। प्रशासन और पुलिस इस बात का इंतजार करते हैं कि आखिर कब पीडि़त पक्ष अपनी शिकायत वापस लेगा, क्योंकि डीपीसी स्कूल में ज्यादातर नेताओं और अधिकारियों के बच्चे पढ़ते हैं। यही कारण है स्कूल प्रिंसिपल एवं प्रबंधन के खिलाफ जाने की पुलिस-प्रशासन हिम्मत जुटा नहीं पाते। स्कूल में बच्चे के साथ यदि कुछ गलत होता है तो उसमें जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की होती है मगर डीपीएस, स्टेप बाय स्टेप, रेयान इंटरनेशनल, असीसी कान्वेंट जैसे स्कूल जिम्मेदारी से बचने के लिए खुद को अलग कर लेते हैं। शुरू में आरोपी को बचाने की कोशिश, पानी सिर से ऊपर जाने के बाद उस पर ही ठीकरा फोड़ा जाता है। ग्रेटर नोएडा डीपीएस स्कूल में भी यही देखने को मिला है। इससे पहले सेक्टर-30 स्थित डीपीएस में रैगिंग के मामले में भी ऐसा ही देखने को मिला था। थाना सेक्टर-20 में रिपोर्ट दर्ज हुई मगर मामला पुलिस के उच्च अधिकारियों के हस्तक्षेप के कारण किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई और न ही पुलिस तफ्तीश तेजी से आगे बढ़ सकी। आखिर में दबाव के कारण समझौता हुआ और अभिभावकों ने चुपचाप शिकायत वापस ले ली। अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लिया। 3 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के प्रयास जैसी संगीन वारदात होने के बाद भी प्रिंसिपल रेणु चतुर्वेदी ने बच्ची के परिजनों पर दबाव बनाया कि वह रिपोर्ट दर्ज न कराएं लेकिन परिजनों ने हिम्मत दिखाई और उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करा दी। रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जब पुलिस स्कूल पहुंची तो प्रिंसिपल ने उन से सीधे मुंह बात तक नहीं की। उल्टा उन्हें धमका दिया। ऐसे में पुलिस शांत रहेगी और अभिभावकों को झुकना ही पड़ेगा। दबी आवाज में पुलिस भी स्कूल का विरोध कर रही है मगर चाहकर भी कोई कार्रवाई प्रिंसिपल के खिलाफ नहीं हो पा रही है। हालांकि आरोपी गिरफ्तार हो चुका है मगर जांच में पुलिस को सहयोग नहीं मिल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है स्कूल में अभिभावक अपने बच्चों को फ्री पढ़ा रहे हों।