रोहिंग्याओं का कवरेज करने वाले पत्रकाओं को 7-7 साल की कैद

फैसले से लोग नाराज, मीडिया की आजादी पर हमला करार दिया

यांगोन। म्यांमार की एक अदालत ने सोमवार को रॉयटर्स न्यूज एजेंसी के दो पत्रकारों वा लोन (32) और क्याव सो ऊ (28) को 7-7 साल की सजा सुनाई। जज ये लविन ने कहा कि दोनों ने म्यांमार के गोपनीयता कानून को तोड़कर रोहिंग्या मामले की रिपोर्टिंग की। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि म्यांमार में अदालतें स्वतंत्र रूप से फैसला लेती हैं। आगे की कार्रवाई भी कानून के तहत ही होगी। फैसले को मीडिया की आजादी पर हमला करार दिया जा रहा है।

ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया डायरेक्टर फिल रॉबर्टसन ने ट्वीट करके कहा, रॉयटर्स के दो रिपोर्टर्स को दोषी करार दिया जाना म्यांमार में प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है। ये दिखाता है कि इन्वेस्टीगेटिव जर्नलिज्म से म्यांमार सरकार किस तरह डरती है। लोन और ऊ को जुलाई में गोपनीयता कानून तोडऩे का दोषी पाया गया था। इसके तहत अधिकतम 14 साल की सजा हो सकती थी। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई देशों ने रिपोर्टर्स को सजा दिए जाने की आलोचना की है।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के फैक्ट फाइंडिंग मिशन की एक रिपोर्ट में म्यांमार की सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाया। यह भी कहा गया कि सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या की, उन्हें जेल में डाला और यौन शोषण किया। लिहाजा म्यांमार के सैन्य अफसरों पर नरसंहार का केस चलना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार की मिलिट्री कभी भी लोगों को जान से मारने, महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने, बच्चों की हत्या और पूरे गांव को बर्बाद कर देने की सफाई नहीं दे सकती। रखाइन राज्य में म्यांमार सेना का ऐसा करना एक तरह से सुरक्षा के लिए खतरा है। म्यांमार की आर्मी इन आरोपों का खंडन कर रही है। अब तक करीब 7 लाख रोहिंग्या देश छोड़कर बांग्लादेश जा चुके हैं।

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