यूपी में राज की नीति

चाणक्य ने बरसों पहले सत्ता हासिल करने के साथ-साथ राजनीति के गुण व दोष पर भी प्रकाश डाला था। लोगों ने कहा है कि राजनीति में सबकुछ जायज है। यूपी में कहा जाता था कि चाहे जो हो जाए सपा और बसपा कभी एक नहीं हो सकते। इन दोनों दलों के बीच ब्यूरोक्रेसी भी बंट गई। कुछ आईएएस-आईपीएस सपा समर्थित तो बसपा के समर्थन में रहते थे। उनकी पोस्टिंग भी इन दलों के सत्ता में रहने के कारण तय होती थी। सपा अध्यक्ष एवं पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने जब से बुआ यानी मायावती  को मनाया तब से भाजपा की बेचैनी बढ़ गई। दो ध्रूवीय पार्टी राजनीति में एक हो गईं। अब भाजपा और सपा-बसपा के बीच शह-मात का खेल चल रहा है। अखिलेश यादव भाजपा के हाथ में नहीं आ पा रहे क्योंकि उन पर भ्रष्टïाचार के कोई आरोप
नहीं लगे।
सुश्री मायावती सीबीआई और ईडी के माध्यम से सत्ताधारी दल भाजपा के हाथ में है। मगर, आजकल वे भाजपा के खिलाफ  होकर सपा का साथ दिख रही हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें दोनों ने बहुत बढ़ा दी। राज के लिए अब नीति का खेल शुरू गया है। नौकरशाहों एवं अखिलेश-मायावती के करीबियों के माध्यम से ही उन तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है। चर्चा तो ये भी है कि रिटायर्ड आईएएस पीसी गुप्ता को घेर कर दोनों नेताओं तक पहुंचने की पूरजोर कोशिश है। कडिय़ां मिली हैं मगर, ये सभी कमजोर हैं। इससे पहले ब्रह्मïपाल चौधरी पर आयकर विभाग द्वारा शिकंजा कसा गया। ब्रह्मïपाल के माध्यम से अखिलेश की परछाई तक जाने की तैयारी थी। अब बिल्डरों के माध्यम से सपा और बसपा पर काबू करने का प्रयास किया जा रहा है। यह सब इसलिए हो रहा है कि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले ही सपा-बसपा की छवि धूमिल की जा सके और दोनों पार्टियों की करीबियां खत्म की जा सके।

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