पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का प्रहार >> बुरे दौर से गुजर रहा है देश बढ़ गई है असहिष्णुता
नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में बढ़ती असहिष्णुता और मानवाधिकारों का हनन और देश का अधिकांश धन अमीरों की जेब में जाने से गरीबों के बीच बढ़ती खाई पर चिंता जाहिर की।
दिल्ली में ‘शांति, सद्भाव और प्रसन्नता की ओर : संक्रमण से परिवर्तन’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘जिस देश ने दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और सहिष्णुता का सभ्यतामूलक लोकाचार, स्वीकार्यता और क्षमा की अवधारणा प्रदान की वहां अब बढ़ती असहिष्णुता, गुस्से का इजहार और मानवाधिकरों का अतिक्रमण की खबरें आ रही हैं।’ इस समारोह का आयोजन प्रणब मुखर्जी फाउंडेशन और सेंटर फॉर रिसर्च फॉर रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट द्वारा किया गया है। उन्होंने कहा, ‘जब राष्ट्र बहुलवाद और सहिष्णुता का स्वागत करता है और विभिन्न समुदायों में सद्भाव को प्रोत्साहन देता है, हम नफरत के जहर को साफ करते हैं और अपने दैनिक जीवन में ईष्र्या और आक्रामकता को दूर करते हैं तो वहां शांति और भाईचारे की भावना आती है।’
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘उन देशों में अधिक खुशहाली होती है जो अपने निवासियों के लिए मूलभूत सुविधाएं और संसाधन सुनिश्चित करते हैं, अधिक सुरक्षा देते हैं, स्वायत्ता प्रदान करते हैं और लोगों की सूचनाओं तक पहुंच होती है। जहां व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी होती है और लोकतंत्र सुरक्षित होता है वहां लोग अधिक खुश रहते हैं।’ मुखर्जी ने कहा, ‘आर्थिक दशाओं की परवाह किए बगैर लोक शांति के वातावरण में खुश रहते हैं।’ आंकड़ों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर इन आंकड़े की उपेक्षा की जाएगी तो प्रगतिशील अर्थव्यवस्था में भी हमारी खुशियां कम हो जाएंगी। हमें विकास के प्रतिमान पर शीघ्र ध्यान देने की जरूरत है।’
शांति-एकता के संदेश को याद करना आवश्यक
गुरुनानक देव की 549वीं जयंती पर उनको श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि आज उनके शांति और एकता के संदेश को याद करना आवश्यक है. उन्होंने चाणक्य की सूक्ति को याद करते हुए कहा कि प्रजा की खुशी में ही राजा की खुशी निहित होती है. ऋग्वेद में कहा गया है कि हमारे बीच एकता हो, स्वर में संसक्ति और सोच में समता हो।