एफएटीएफ ने पाक को ग्रे लिस्ट में डाला

नई दिल्ली। आतंकी फंडिंग को लेकर फ्रांस के संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में शामिल किया है। एफएटीएफ के फैसले का स्वागत करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान ने एफएटीएफ के मानकों को लागू करने का आश्वासन दिया था। लेकिन पाक आतंकी फंडिंग रोकने में नाकाम रहा। पाक में अभी भी आतंकी हाफिज सईद और जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं। इसलिए उसका यही अंजाम होना चाहिए। हमें उम्मीद है कि एफएटीएफ के प्लान का समयबध्द तरीके से पालन किया जाएगा। पाक को 2012 से 2015 के दौरान भी ग्रे सूची में शामिल किया गया था।
पाक मीडिया के मुताबिक, पेरिस में 24 से 29 जून को एफएटीएफ की समीक्षा बैठक हुई। इसमें पाक को ग्रे लिस्ट में 9वें स्थान पर रखा गया। पाकिस्तान के अलावा ग्रे लिस्ट में 8 अन्य देशों इथियोपिया, सर्बिया, श्रीलंका, सीरिया, त्रिनिदाद और टोबेगो, ट्यूनीशिया और यमन शामिल हैं।

पाक में आतंकियों को फंडिंग जारी- रिपोटर्: एफएटीएफ की समीक्षा बैठक में पाकिस्तान द्वारा आतंकी फंडिंग रोकने के लिए उठाए गए कदमों की रिपोर्ट पेश की थी। पाक ने अगले 15 महीने में आतंकी फंडिंग को रोकने के लिए 26 सूत्रीय एक्शन प्लान पेश किया। एफएटीएफ ने इंटरनेशनल कोऑपरेशन रिव्यू ग्रुप (आईसीआरजी) की रिपोर्ट की समीक्षा के बाद पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में शामिल कर लिया। आईसीआरजी की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान सीमा पार से हो रही फंडिंग को रोकने में नाकाम रहा है। पाक अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया कि एफएटीएफ ने सभी 9 देशों को समय सीमा में उसके मानकों के तहत आतंकी फंडिंग पर एक्शन लेने के लिए कहा है। इस फैसले से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि को भी नुकसान होगा। विदेशी निवेश पर भी इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।

ग्रे लिस्ट में आना यानी मदद मिलने में मुश्किल: जी-7 देशों की पहल पर एफएटीएफ की स्थापना 1989 में हुई थी। ये एक अंतरराष्ट्रीय निकाय है। इस संगठन के सदस्यों की संख्या 37 है। भारत भी इस संगठन का सदस्य है। इसका मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग पर लगाम लगाने में नाकाम देशों की रेटिंग तैयार करना है। एफएटीएफ ऐसे देशों की दो लिस्ट तैयार करता है। पहली लिस्ट ग्रे और दूसरी ब्लैक होती है। ग्रे लिस्ट में शामिल होने वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से आर्थिक मदद मिलने में मुश्किल होती है। वहीं, ब्लैक लिस्ट में आने वाले देशों को आर्थिक सहायता मिलने का रास्ता पूरी तरह से बंद हो जाता है।

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