लेखन किसी नियम और आचार संहिता में बंधा नहीं होता। प्रेमचंद से लेकर अब तक कहानी की परंपरा कई दौर देख चुकी है। कथन और शिल्प के स्तर पर सहजता ही कहानी को विशिष्ट बनाती है। साहित्यकार राजा खुगशाल ने साहित्य विमर्श कार्यक्रम में यह विचार रखे।
होटल रेडबरी में कथा संवाद विमर्श की अध्यक्षता डॉ. लक्ष्मी शंकर वाजपई ने की।
उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन कम देखने को मिलते हैं, जिनमें विभिन्न विधाओं के साहित्यकार एक साथ विचार व्यक्त करें। उनकी रचना सोनू की बंदूक ने खूब प्रसंशा बटोरी।
विशिष्ट अतिथि अर्चना चतुर्वेदी ने कहा कि कथा रंग द्वारा जलाया गया यह दीपक साहित्य जगत में विशेष आभा फैला रहा है। उनकी व्यंग्य रचना लौट के पत्नी प्रेम में आए की श्रोताओं ने तारीफ की। कार्यक्रम में उपस्थित विशेष आमंत्रित अतिथि ममता किरण ने सॉरी बेटा के जरिए दो पीढ़ियों में बढ़ रही दूरी को प्रस्तुत किया।
इस दौरान ब्रज मोहन मेरठी, सुशील शर्मा, कुलदीप, प्रभात चौधरी, संजय भदौरिया, रवि शंकर पांडे, सुभाष कुमार, रविंद्र कुमार रवि, दिनेश कुमार खोजांपुरी और अन्य लोग मौजूद रहे।