“जो लोग आपको सीधे कंट्रोल नहीं कर सकते, वो एक ख़ास तकनीक अपनाते हैं – शर्म और गिल्ट (अपराधबोध)। वो आपको हर वक़्त ये एहसास दिलाते रहते हैं कि आप जो भी कर रहे हैं, उसके लिए आपको शर्मिंदा होना चाहिए। जैसे ही आपको ये लगने लगता है कि आपके अंदर कुछ शर्मनाक है, वैसे ही वो आप पर कंट्रोल हासिल कर लेते हैं।”
तमन्नाह की ये बात सुनकर बहुत से लोग अपनी ज़िन्दगी के रिश्तों, परिवार, दोस्तों या यहाँ तक कि वर्कप्लेस में हुई घटनाओं को याद करने लगे। क्योंकि शर्म और अपराधबोध को हथियार बनाकर लोगों को कंट्रोल करना आजकल बहुत आम हो गया है।
स्वस्थ अपराधबोध और ज़हरीला अपराधबोध में फ़र्क
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट नेहा पराशर (माइंडटॉक) बताती हैं कि अपराधबोध दो तरह का होता है:
1. स्वस्थ अपराधबोध (Healthy Guilt)
• किसी ख़ास ग़लती पर आता है
• सुधार की गुंजाइश देता है
• माफ़ी माँगने या बात सुलझाने के बाद ख़त्म हो जाता है
• आपको बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देता है
2. ज़हरीला अपराधबोध / शेमिंग (Toxic Guilt & Shaming)
• आपकी ग़लती से ज़्यादा आपकी पहचान पर हमला करता है (“तुम हमेशा ग़लत ही करते हो”, “तुम्हारी वजह से सब बर्बाद हो गया”)
• कभी स्पष्ट नहीं होता, हमेशा लटका रहता है
• माफ़ी माँगने पर भी ख़त्म नहीं होता, क्योंकि मकसद सुधार नहीं, कंट्रोल करना है
• आपको कमज़ोर, बेकार और हमेशा दोषी महसूस करवाता है
• आपको हर छोटी-बड़ी बात के लिए दोषी ठहराया जाता है, चाहे आपकी ग़लती न हो
• आपकी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर कहा जाता है, “तुम सिर्फ़ अपने बारे में सोचते हो”
• आप माफ़ी माँग चुके हैं, फिर भी बात ख़त्म नहीं होती
• उस इंसान के साथ बात करने के बाद हमेशा भारीपन, कन्फ़्यूज़न या डर लगता है
• आप हर वक़्त एगशेल्स (काँच के छिलकों) पर चलने जैसा महसूस करते हैं
खुद को कैसे बचाएँ?
नेहा पराशर के अनुसार:
1. सबसे पहले ये समझें कि हर अपराधबोध सच्चा नहीं होता, बहुत बार वो दूसरों का बनाया हुआ होता है।
2. अपने साथ सवाल करें – “क्या मैंने सच में ग़लत किया या मुझे ग़लत ठहराया जा रहा है?”
3. साफ़-साफ़ बॉउंड्री सेट करें – “मुझे इस तरह बात करना पसंद नहीं है”, “मैं इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हूँ” कहने की हिम्मत रखें।
4. ऐसे लोगों से इमोशनल दूरी बनाएँ जो बार-बार शेमिंग करते हैं।
5. दोस्तों, मेंटर या थेरेपिस्ट से बात करें – बाहर का नज़रिया बहुत मदद करता है।
6. ख़ुद पर दया करें – सेल्फ-कम्पैशन प्रैक्टिस करें। याद रखें – आपकी वैल्यू किसी की राय से तय नहीं होती।
तमन्नाह भाटिया ने जिस साधारण-सी लगने वाली बात को उठाया, वो असल में लाखों लोगों की रोज़ की सच्चाई है। अगर आप भी किसी रिश्ते में बार-बार बेवजह शर्मिंदा या दोषी महसूस करते हैं, तो एक बार रुक कर सोचिए – कहीं ये आपकी ग़लती नहीं, किसी का कंट्रोल करने का तरीक़ा तो नहीं?
आपकी मानसिक सेहत सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है। उसे कोई छीनने न दे।

