Punjab/Akali Dal News: पंजाब की सियासत में शिरोमणि अकाली दल (SAD) का इतिहास गौरव और उतार-चढ़ाव की कहानी है। कभी पंजाब की राजनीति का सिरमौर रहा यह दल आज आंतरिक कलह, नेतृत्व संकट और उभरती नई ताकतों के बीच अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। हालिया रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि कैसे अकाली दल के बिखरते धड़े और बदलते सियासी हालात ने पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य को नया रूप देना शुरू कर दिया है।
अकाली दल का गौरवशाली अतीत
1920 में स्थापित शिरोमणि अकाली दल पंजाब की क्षेत्रीय और पंथक पहचान का प्रतीक रहा है। इसने सिख समुदाय के हितों, पंजाबी संस्कृति और क्षेत्रीय स्वायत्तता के लिए आवाज उठाई। प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में यह दल कई बार सत्ता में रहा, खासकर 1977 में अकाली दल-जनता पार्टी गठबंधन और 2007-2017 के बीच भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गठजोड़ के दौरान। इस दौर में अकाली दल ने पंजाब की सियासत में गहरा प्रभाव डाला, लेकिन 2015 की बेअदबी घटनाओं और गुरमीत राम रहीम को माफी देने जैसे विवादास्पद फैसलों ने पार्टी की साख को चोट पहुंचाई।
आंतरिक संकट और बगावत
पिछले कुछ वर्षों में अकाली दल के भीतर असंतोष बढ़ता गया। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे। 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी केवल एक सीट (बठिंडा, हरसिमरत कौर बादल) जीत सकी, जिसने संकट को और गहरा दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं जैसे प्रेम सिंह चंदूमाजरा, बीबी जागीर कौर, गुरप्रताप सिंह वडाला और सुखदेव सिंह ढींडसा ने सुखबीर के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया।
2024 में अकाल तख्त ने सुखबीर को ‘तनखैया’ (धार्मिक कदाचार का दोषी) घोषित किया, जिसके बाद उन्होंने नवंबर 2024 में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। यह कदम रणनीतिक माना गया, ताकि सजा पूरी होने पर वे फिर से नेतृत्व संभाल सकें। हालांकि, पार्टी के भीतर ‘शिरोमणि अकाली दल सुधार लहर’ जैसे आंदोलनों ने संगठन को नया रूप देने की मांग की।
नया उभार: कट्टरपंथी अकाली दल
अकाली दल के कमजोर पड़ने से पैदा हुए सियासी खालीपन को भरने के लिए एक नई ताकत उभर रही है। जेल में बंद खडूर साहिब के सांसद अमृतपाल सिंह के पिता तरसेम सिंह ने ‘शिरोमणि अकाली दल (आनंदपुर साहिब)’ नाम से नई पार्टी बनाने की घोषणा की। यह पार्टी 14 जनवरी 2025 को मुक्तसर के माघी मेले में औपचारिक रूप से लॉन्च हुई। इसका लक्ष्य सिख पंथ और पंजाब के हितों को केंद्र में रखकर अकाली दल का विकल्प बनना है।
तरसेम सिंह का कहना है कि मौजूदा अकाली दल अपनी विरासत को संभालने में नाकाम रहा है। नई पार्टी में सरबजीत सिंह खालसा (बेअंत सिंह के बेटे) और जरनैल सिंह भिंडरावाले के सहयोगियों के परिवार जैसे कट्टरपंथी चेहरे शामिल हैं। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि पंजाब के मतदाता ऐतिहासिक रूप से कट्टरपंथी राजनीति को ज्यादा तवज्जो नहीं देते।
सियासी परिदृश्य पर प्रभाव
नई पार्टी के उभार और अकाली दल के कमजोर होने से पंजाब की सियासत में कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं। विश्लेषक हरजेश्वर सिंह के मुताबिक, नई पार्टी अकाली दल के पंथक वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकती है, लेकिन कट्टरपंथी लहजा मतदाताओं को आकर्षित कर पाएगा, यह कहना मुश्किल है। इससे सिख-हिंदू ध्रुवीकरण की आशंका भी है, जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस भी पंजाब में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में हैं। AAP के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अकाली दल और कांग्रेस की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए हैं। दूसरी ओर, बीजेपी सिख चेहरों को अपनी पार्टी में शामिल कर अकाली दल के वोट बैंक को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रही है।
आगे की राह
अकाली दल के सामने अब संगठन को पुनर्जनन करने की चुनौती है। माघी मेले में ‘उदारवादी’ अकाली दल और ‘कट्टरपंथी’ नई पार्टी के बीच टकराव की संभावना है। साथ ही, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) के आगामी चुनाव भी दोनों धड़ों के लिए अहम होंगे।
पंजाब की सियासत में अकाली दल का प्रभाव कम होने से नया सियासी समीकरण बन रहा है। क्या यह नई पार्टी पंजाब के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा कर पाएगी, या अकाली दल अपने गौरवशाली अतीत को फिर से जीवित करेगा? यह सवाल समय ही जवाब देगा।

