New Delhi News: भारतीय मूल की अर्थशास्त्री महिला अर्थशास्त्री ने IMF से दिया इस्तीफा, हार्वर्ड में वापसी की

New Delhi News: भारतीय मूल की प्रख्यात अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में अपनी सात साल की शानदार पारी खेलने के बाद पहली उप प्रबंध निदेशक (First Deputy Managing Director) के पद से इस्तीफा दे दिया है। वह अब अपनी अकादमिक जड़ों की ओर लौट रही हैं और 1 सितंबर, 2025 से हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर के रूप में कार्य शुरू करेंगी। इस नए अध्याय में वह ‘ग्रेगरी और एनिया कॉफी प्रोफेसर ऑफ इकोनॉमिक्स’ की भूमिका निभाएंगी।

गीता गोपीनाथ ने अपने आधिकारिक X अकाउंट पर इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा, “IMF में लगभग सात शानदार वर्षों के बाद, मैंने अपनी अकादमिक जड़ों में वापसी का फैसला किया है। मैं अंतरराष्ट्रीय वित्त और मैक्रोइकॉनॉमिक्स में अनुसंधान को आगे बढ़ाने और अगली पीढ़ी के अर्थशास्त्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए उत्साहित हूँ।”

दिल्ली से प्रिंसटन तक
गीता गोपीनाथ का जन्म 8 दिसंबर, 1971 को कोलकाता में एक मलयाली परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा मैसूर के निर्मला कॉन्वेंट स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज (LSR) से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की, जहां उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें कई स्वर्ण पदक दिलाए। 1994 में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (DSE) से मास्टर्स की डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने वाशिंगटन विश्वविद्यालय से एक और मास्टर्स और फिर प्रिंसटन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी पूरी की। उनकी पीएचडी थीसिस, “थ्री एसेज ऑन इंटरनेशनल कैपिटल फ्लोज: अ सर्च थियोरेटिक अप्रोच”, ने अंतरराष्ट्रीय वित्त के क्षेत्र में उनकी गहरी समझ को प्रदर्शित किया। उनके मार्गदर्शकों में बेन बर्नानके और केनेथ रोगॉफ जैसे प्रख्यात अर्थशास्त्री शामिल थे।

IMF में ऐतिहासिक योगदान
गीता गोपीनाथ ने 2018 में IMF में मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में नियुक्त होकर इतिहास रचा, क्योंकि वह इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला थीं। इसके बाद, जनवरी 2022 में उन्हें IMF की पहली उप प्रबंध निदेशक के रूप में पदोन्नत किया गया। इस भूमिका में उन्होंने वैश्विक आर्थिक नीतियों को आकार देने, कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक रणनीतियों को तैयार करने और कम आय वाले देशों के लिए टीकाकरण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में योगदान दिया। उनके सह-लेखन में तैयार “पैनडेमिक पेपर” ने वैश्विक टीकाकरण लक्ष्यों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप IMF, विश्व बैंक, WHO और WTO के नेतृत्व में एक बहुपक्षीय कार्य बल का गठन हुआ।

हार्वर्ड में वापसी
2005 से 2022 तक हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जॉन ज्वानस्ट्रा प्रोफेसर ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज एंड इकोनॉमिक्स के रूप में कार्य करने वाली गीता अब हार्वर्ड में एक नई भूमिका में लौट रही हैं। हार्वर्ड के सामाजिक विज्ञान डीन डेविड एम. कटलर ने कहा, “गीता के अकादमिक कार्य ने विनिमय दरों, अंतरराष्ट्रीय पूंजी प्रवाह और वैश्विक वित्तीय संरचना की हमारी समझ को मौलिक रूप से आकार दिया है।”

पुरस्कार और सम्मान
गीता गोपीनाथ को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें भारत सरकार द्वारा प्रवासी भारतीय सम्मान, वाशिंगटन विश्वविद्यालय का विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार और विश्व आर्थिक मंच द्वारा 2011 में यंग ग्लोबल लीडर के रूप में चुना जाना शामिल है।

भारतीय शिक्षा का प्रभाव
गीता की सफलता में उनकी भारतीय शिक्षा, विशेष रूप से LSR और DSE की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन संस्थानों ने उनकी बौद्धिक नींव को मजबूत किया और वैश्विक आर्थिक मंचों पर भारत का गौरव बढ़ाने में मदद की। उनकी कहानी भारत के हर छात्र के लिए प्रेरणा है, जो यह दर्शाती है कि मेहनत और समर्पण से वैश्विक मंच पर भी सफलता हासिल की जा सकती है।

गीता गोपीनाथ की इस वापसी को न केवल उनके व्यक्तिगत करियर का एक नया अध्याय माना जा रहा है, बल्कि यह भारतीय मूल के अर्थशास्त्रियों के लिए भी एक प्रेरणादायक क्षण रूप में भी देखा जा रहा है।

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