Delhi News: नई दिल्ली। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में बढ़े पानी के बिलों पर माफी की ‘वन टाइम सेटलमेंट’ को हवाई योजना करार दिया है। उन्होंने कहा कि केजरीवाल इस पर शुद्ध राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 10 साल से दिल्ली जल बोर्ड मुख्यमंत्री के अधीन है। माफी योजना से जुड़ा कोई कागज उनके पास नहीं है।
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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र में एलजी ने विस्तार से कई आपत्तियां जताई हैं। उन्होंने कहा कि 10 साल से दिल्ली जल बोर्ड उनके अधीन है, ऐसे में कैसे लोगों के बढ़ा चढ़ाकर बिल आए। पिछले साल दिल्ली जल बोर्ड ने ‘वन टाइम सेटलमेंट’ योजना को मंजूरी दी थी। पिछले एक साल से यह मुद्दा क्यों नहीं उठाया गया। दिल्ली विधानसभा में बताया गया है कि मंजूरी जून में दी गई। यह विशेषाधिकार हनन का मामला है कि सदन में गलत जानकारी दी गई है।
एलजी ने कहा कि ‘वन टाइम सेटलमेंट’ योजना से जुड़ी फाइल को 13 जनवरी को दिल्ली जल बोर्ड की मंजूरी मिली। इसके एक साल बाद फाइल वित्त विभाग के पास भेजी गई और हाल ही में 21 फरवरी को फाइल मुख्य सचिव के पास पहुंची है। इसका मतलब है कि योजना अभी भी कागजों में है और अंतिम रूप दिए जाने से काफी दूर है। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि केजरीवाल ‘आरोप लगाओ और भाग जाओ’ की अपनी राजनीति कर रहे हैं,जिन पर उनका कैरियर आधारित है। यह अपनी अक्षमता और अकुशलता को छिपाने का तरीका है। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री का मकसद लोगों को लाभ पहुंचाना नहीं बल्कि झूठे राजनीतिक दावे कर लोगों को गुमराह करना है।
उपराज्यपाल ने जल आपूर्ति की स्थिति पर उठाए सवाल
उपराज्यपाल ने दिल्ली में जल आपूर्ति की स्थिति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जल बोर्ड मुख्यमंत्री के अधीन आता है और करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी न जल आपूर्ति बढ़ी है और न ही गुणवत्ता में सुधार हुआ है। सात प्रतिशत लोगों तक नल से जल नहीं पहुंचा है और 82 प्रतिशत को ही सीवरेज की सुविधा मिली है। आवश्यकता से कम सीवरेज का ट्रीटमेंट होता है। उन्होंने कहा कि हर साल दिल्ली जल बोर्ड का सीएजी से होने वाला आवश्यक आॅडिट 2018 से टाला जा रहा है।
उपराज्यपाल ने सवाल उठाया कि 27 लाख उपभोक्ताओं में से 10 लाख उपभोक्ताओं को ‘वन टाइम सेटलमेंट’ योजना का लाभ पहुंचाए जाने की बात मुख्यमंत्री और उनके मंत्री कर रहे हैं। उनका सामूहिक बिल माफ कर दिया जाएगा लेकिन उन 17 लाख उपभोक्ताओं का क्या होगा, जिन्होंने ईमानदारी से बिल देते रहे हैं। उन्हें भी ब्याज सहित उनका बिल लौटाया जाना चाहिए।
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