स्वतंत्रता संग्राम में RSS की भूमिका पर विवाद: ओवैसी ने PM मोदी के बयान को बताया ‘अपमान’, कहा- संगठन ब्रिटिश समर्थक रहा

Controversy over RSS’s role in the freedom struggle: एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भारत की आजादी की लड़ाई में भूमिका पर सवाल उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान को ‘स्वतंत्रता संग्राम का अपमान’ करार दिया है। ओवैसी का यह बयान पीएम मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण के संदर्भ में आया है, जिसमें उन्होंने आरएसएस के योगदान की सराहना की थी। ओवैसी ने दावा किया कि आरएसएस ने आजादी की लड़ाई में कभी हिस्सा नहीं लिया और उसके सदस्यों ने न तो जेल यात्रा की, न ही अपनी जान गंवाई।

ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “स्वतंत्रता दिवस के भाषण में आरएसएस की महिमा करना स्वतंत्रता संग्राम का अपमान है। आरएसएस और उसके वैचारिक सहयोगी ब्रिटिश पैर सिपाहियों की तरह काम करते रहे। उन्होंने आजादी की लड़ाई में कभी शामिल नहीं हुए और ब्रिटिश से ज्यादा गांधी जी से नफरत करते थे।” उन्होंने आगे कहा, “पीएम मोदी रेड फोर्ट से स्वयंसेवक के रूप में आरएसएस की तारीफ कर सकते थे, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में ऐसा कहना उचित नहीं।” ओवैसी ने यह भी जोड़ा कि हिंदुत्व की विचारधारा संविधान के समावेशी राष्ट्रवाद के विपरीत है और संग परिवार द्वारा फैलाई जा रही नफरत आजादी के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

यह विवाद तब भड़का जब पीएम मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से अपने भाषण में आरएसएस को स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले संगठन के रूप में चित्रित किया। उन्होंने दावा किया कि आरएसएस ने देशभक्ति की भावना को जीवित रखा और ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित किया। आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर नागपुर में आयोजित कार्यक्रम में भी पीएम ने संगठन की भूमिका की सराहना की थी।

हालांकि, ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आरएसएस की भूमिका विवादास्पद रही है। आरएसएस की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी, जो स्वयं व्यक्तिगत रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे और 1930 के नमक सत्याग्रह में भाग लिया था। लेकिन संगठन के रूप में आरएसएस ने क्विट इंडिया मूवमेंट (1942) या अन्य प्रमुख आंदोलनों में प्रत्यक्ष भागीदारी से परहेज किया। आलोचकों के अनुसार, आरएसएस का फोकस हिंदू राष्ट्र निर्माण और सांस्कृतिक जागरण पर था, न कि ब्रिटिश विरोधी सशस्त्र या अहिंसक संघर्ष पर। इतिहासकारों का कहना है कि आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने 1947 में तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार करने का विरोध किया था और भगवा ध्वज को प्राथमिकता दी थी।

दूसरी ओर, आरएसएस समर्थक दावा करते हैं कि संगठन के कई व्यक्तिगत सदस्यों ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया, जैसे कि जेल यात्राएं और भूमिगत गतिविधियां। वे कहते हैं कि संगठन ने ब्रिटिश शासन के दौरान राष्ट्रवादी भावना को मजबूत किया। लेकिन ओवैसी ने हेडगेवार की जीवनी का हवाला देते हुए कहा कि संगठन की स्थापना के बाद कोई सदस्य जेल नहीं गया या जान नहीं गंवाई।

ओवैसी का यह बयान राजनीतिक बहस को और तेज कर सकता है, खासकर जब देश आजादी के 78वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। विपक्षी दल इसे इतिहास के पुनर्लेखन का प्रयास बता रहे हैं, जबकि सत्ताधारी पक्ष इसे राष्ट्रवादी विरासत का सम्मान मानता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी बहसें इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में समझने का अवसर प्रदान करती हैं, लेकिन राजनीतिकरण से बचना चाहिए।

यहां से शेयर करें