अटलजी को विरासत में मिली कविता की कला
अटलजी को विरासत में मिली कविता की कला
नई दिल्ली अटल बिहारी वाजपेयी को कविता की कला उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी से विरासत में मिली थी। कृष्ण बिहारी वाजपेयी भी कवि थे। उनकी कविताओं में राष्ट्र या राजनीति के स्तर पर उपजे हालात का जिक्र होता था या कभी नाराजगी, हौसला और खुशी झलकती थी। पेश हैं अटल जी कविताओं के कुछ अंश
मौत से ठन गई!
ठन गई!
मौत से ठन गई!जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा।मौत से बेखबर, जिंदगी का सफर,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाकी है कोई गिला।हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।आज झकझोरता तेज तूफान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।पार पाने का कायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।