1 min read

नजरिया >> “कोर्ट पर दबाव की राजनीति” – मोहम्मद आजाद

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक न्यूज एजेंसी को इंटरव्यू देकर यह संदेश दिया कि वे प्रेस से दूरी नहीं बना कर रखना चाहते हैं। यह बात दीगर है कि यहां उन्होंने एक तीर से कई शिकार कर डाले। उन्होंने ऐसी एजेंसी को इंटरव्यू दिया जो सारे चैनलों को दिखाना जरूरी हो गया। साथ ही क्रॉस सवाल की संभावना भी नहीं रही। वही पूछा गया जिसका प्रधानमंत्री जवाब देना चाहते थे। प्रधानमंत्री अगर प्रेस कांफ्रेंस कर उन सभी सवालों का जवाब देते जो उनसे इंटरव्यू में पूछे गए थे, तो क्रॉस सवाल बहुत दागे जाते।

बहरहाल, हर मुद्दे पर उन्होंने अपना दृष्टिïकोण जाहिर कर दिया और यह भी साफ कर दिया कि इस इंटरव्यू के साथ ही चुनावी दांवपेंच भी शुरू हो गए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कल राम मंदिर को लेकर प्रधानमंत्री ने कोर्ट के फैसले की बात कही तो आज विश्व हिंदू परिषद् इसे लेकर मीडिया के सामने आ गई। यानि दो दिन बाद कोर्ट में जो सुनवाई होनी है उसको लेकर दबाव की राजनीति काम कर रही है।

वीएचपी कहती है कि 69 साल से यह मामला कोर्ट में है और अभी तक इसकी सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच भी नहीं बनी है। ऐसे में अनंतकाल तक कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं किया जा सकता। वीएचपी ने आज ही इस पर कानून बनाने की मांग उठाई। इस मामले में वीएचपी पीएम के बयान से भी सहमत नहीं है। मीडिया में दावा किया गया कि तमाम संत समाज वीएचपी के साथ है। लब्बो-लुआब यह है कि 4 जनवरी को अगर फैसला राम मंदिर के पक्ष में नहीं आया तो चुनाव तक इस मुद्दे को गरमाया जाएगा। वीएचपी ने आज कहा भी कि 31 जनवरी को धर्म संसद में इस पर फैसला लिया जाएगा।

पहले पीएम का इंटरव्यू फिर वीएचपी की प्रेस कांफ्रेंस से स्पष्टï लगता है कि चुनाव शुरू हो गया है। संभवत: अगले एक-दो दिन में आरएसएस प्रमुख का बयान भी जरूर इस पर आएगा और उसके साथ-साथ ओवैसी भी जरूर कुछ बोलेंगे। कुल मिलाकर जनता के लिए न भ्रष्टïाचार, न बेराजगारी, न गिरता व्यापार, न शिक्षा, न चिकित्सा और न ही कोई पुराने वादे मुद्दा रहेंगे। ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव को एक बार फिर से राम मंदिर के मुद्दे पर भुनाने की कोशिश रहेगी।

यहां से शेयर करें