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सांप्रदायिक तनाव फैलाने में क्या सोशल मीडिया जिम्मेदार है

नई दिल्ली। रांची में पिछले कुछ दिनों से तनाव का माहौल है। इस दौरान सांप्रदायिक झड़प की तीन घटनाएं हुई हैं। पहली घटना 10 जून को हुई। उस दिन शहर के हिंदपिरी इलाके के मेन रोड पर स्थित भीड़-भाड़ वाले ईद-बाजार में मौजूद भीड़ का उस ग्रुप से झगड़ा हो गया, जो मोदी सरकार के चार साल पूरे होने पर बाइक रैली निकालकर जश्न मना रहा था। एक बाइक की किसी महिला से टक्कर हो जाने के बाद झगड़ा शुरू हुआ।
सोशल मीडिया पर इस संबंध में ताबड़तोड़ पोस्ट डाले जाने और किसी धर्मगुरु की मौत की अफवाह फैलने के कारण मामला गरमा गया। इस इलाके में तकरीबन 4 घंटे तक सांप्रदायिक रूप से उथल-पुथल वाला माहौल बना रहा। बाद में उसी दिन शाम को मदरसा से लौटते वक्त नगड़ी में (शहरी का बाहरी इलाका) एक संप्रदाय के दो धर्मगुरुओं पर हमला किया गया और उन्हें कथित तौर पर खास ‘देवता’ का नाम बोलने पर मजबूर किया गया, जिससे सांप्रदायिक माहौल और गरमा गया. घटना के चार दिन बीत जाने के बाद भी पूरे इलाके में तनाव का माहौल बरकरार है और इलाके में 100 से भी ज्यादा पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है. इसी दौरान एक मंदिर में प्रतिबंधित मीट पाए जाने की अफवाह फैलने के बाद दो समूहों के बीच पथराव की दो घटनाएं भी हुईं।
अफवाहों ने तनाव को दी हवा
इस घटना के वक्त गौरव पांडे रांची के डेली मार्केट स्थित मोबाइल एक्सेसरीज की एक दुकान में मौजूद थे। उन्होंने हिंदपिरी की घटना को कुछ इस तरह से बयां किया, जिस वक्त यह पूरा मामला शुरू हुआ, उस वक्त मैं अपने फोन के लिए टेंपर्ड ग्लास खरीद रहा था. मैं दूर से जय श्री राम के नारे सुन रहा था. दुकानदार मेरा जानकार था और उसने मुझे तुरंत यहां से निकल जाने को कहा। मुझे तनिक भी अंदाजा नहीं था कि क्या हो रहा है, लेकिन जब जब मैं 20 मिनट बाद घर पहुंचा, तो मेन रोड इलाके में हिंसा भड़क उठी थी. इसके बाद लोगों के मारे जाने के बारे में संदेश फैलाए जाने लगे. हालांकि, इस तरह की बात अफवाह निकली।
सोशल मीडिया पर शिकंजा कस रही है पुलिस
पुलिस अब लोगों से कह रही है कि वे सोशल मीडिया पर आने वाले सांप्रदायिक तौर पर भड़काऊ संदेशों को सीधे पुलिस मुख्यालय भेजें, ताकि अफवाह फैलाने वालों पर शिकंजा कसा जा सके. एक सप्ताह पहले शहर के सीनियर एसपी कुलदीप द्विवेदी ने नोटिफिकेशन जारी कर प्रशासन को हजारीबाग में सोशल मीडिया ग्रुप की हरकतों को लेकर चेतावनी जारी की थी. इसमें अफवाह फैलाने के बारे में आगाह किया गया था। चेतावनी जारी कर कहा गया था कि इस वजह से लोगों के बीच तनाव पैदा हो सकता है.
अलग राज्य बनने से पहले 1967 में शहर मे हुए थे दंगे
बहरहाल, झारखंड की राजधानी बनने से पहले 1967 में रांची में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जब यह शहर बिहार का हिस्सा हुआ करता था. उस वक्त उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा देने की मांग को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने शहर में जुलूस निकाला था, जिस पर हमला कर दिया गया था. उस वक्त पूर्वी पाकिस्तान से हिंदू शरणार्थियों के भारत आने का सिलसिला जारी था और इस वजह से देश के पूर्वी हिस्से में सांप्रदायिक तनाव का माहौल था. किरो भले ही रांची के शांतिपूर्ण अतीत की बात कर रहे हों, लेकिन झारखंड की राजधानी में फिलहाल बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात हैं और उनकी तरफ से हालात की निगरानी का काम जारी है।

पुलिस को ईद तक हाई अलर्ट का आदेश जारी किया गया है. ईद 17 जून को मनाए जाने की संभावना है. झारखंड पुलिस के प्रवक्ता वी के श्रीवास्तव ने बताया, हम अफवाह फैलाने वालों पर शिकंजा कस रहे हैं. उन सभी पर आईटी कानून के तहत मामला दर्ज कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

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